भगवान देवनारायण जी का इतिहास व जीवनी | History Of Devnarayan In Hindi

 भगवान देवनारायण जी का इतिहास व जीवनी | History Of Devnarayan In Hindi

बगडावत भारत कथा_sampurn bagadawat
बगडावत भारत कथा_sampurn bagadawat

बगडावत भारत कथा -18

सवाई भोज खुद रण क्षेत्र में जाने की तैयारी करते हैं।

रानी जयमती ने सवाई भोज को अपने पास महल में ही चौपड़ में उलझाए रखा और युद्ध भूमि में जाने नहीं दिया। सारे भाईयों की मौत के बाद सवाई भोज खुद रण क्षेत्र में जाने की तैयारी करते हैं। रानी जयमती से अपने अस्र-शस्र मांगते हैं तो रानी वहां पर भी एक वर मांगती है कि मैं भी आपके साथ युद्ध में चलूंगी और आपके पीछे बुंली घोड़ी पर सवार रहूंगी मगर आप पीछे मुड़कर मेरी ओर नहीं देखना, नहीं तो मैं आपका सिर उतार लूंगी। यह वचन देने के बाद रानी सवाई भोज को उनके अस्र-शस्र देती है। सवाई भोज अपनी सेना को साथ लेकर युद्ध करने के लिये राठोडा की पाल पर पहुंच जाते हैं। रावजी के सामने जाकर उनके ऊपर तलवार से हमला करते हैं। रानी जयमती अपना हाथ आगे कर देती हैं, जिससे उसके हाथों की चूड़ियां कट जाती है। सवाई भोज पीछे मुड़ कर कहते है ये क्या करती हो रानी सा अभी आप का हाथ कट जाता। रानी कहती है की लाओ मेरा वचन पूरा करो, आपने वचन दिया था कि पीछे मुड़कर नहीं देखूंगा इतना सुनते ही सवाई भोज खुद अपना सिर काट कर रानी को दे देते हैं। सवाई भोज की मौत की खबर सुनकर सवाई भोज की दूसरी रानियाँ भी वहाँ आ जाती हैं और हाथ जोड़कर खड़ी हो जाती हैं। मगर पदमादे, जो मेहन्दु जी की माँ थी उन्होने, साडू माता को हाथ जोड़ने से मना कर दिया। वहीं भवानी, चौबीस भाईयों की मुण्ड माला बना रही थी।

रानी जयमती भवानी का रुप धारण कर गले में मुण्ड माला धारण कर २० भुजाओं युक्त सिंह पर सवार बड़ के पेड़ पर बैठी हुई है।


 इधर रावजी कहते हैं भाई राणी कहां है, राणी के लिये ही तो युद्ध किया है। रावजी के इतना कहते ही पेड़ पर बैठी भवानी बोलती है राजाजी ऊपर देखो, रावजी देखकर घबरा जाते है। रानी जयमती भवानी का रुप धारण कर गले में मुण्ड माला धारण कर २० भुजाओं युक्त सिंह पर सवार बड़ के पेड़ पर बैठी हुई है। यह रुप देख रावजी और नीमदेव घबरा जाते हैं। रावजी को रानी के विराट रुप के दर्शन करने के बाद रावजी पछताते हैं कि हमने ऐसे ही अपने भाईयों को खत्म कर दिया है। बगड़ावतों के मरने के बाद उनकी सम्पत्ति की लूट मच जाती है। कश्मीरी तम्बू तो मन्दसोर का मियां ले जाता है, जय मंगला और गज मंगला हाथी पीलोदा के कुम्हार ले गये और सवाई भोज की बुंली घोड़ी सावर के ठाकुर दिया जी ले जाते हैं। सोने का पोरसा पहले ही तेजाजी लेकर चले गये थे और बगड़ावतों की अच्छी नस्ल की गायें नापा ग्वाल गोसमा डूगंरा में ले गया। रावजी नीमदेव से कहते हैं कि सब सामान तो लोग लूट कर ले गये हैं। उन्हें 

बगड़ावतों के मारे जाने का अफसोस होता है और कहते हैं


बगड़ावतों के मारे जाने का अफसोस होता है और कहते हैं कि ऐसे भाई कहां मिलेगें। और यह महसूस करते हैं कि यह सब भवानी की माया है जो बगड़ावत मारे गये। सारी रानियों के सती होने के साथ पदमादे भी सती हो जाती है और साडू माता को सती होने से मना कर देती है क्योंकि भगवान ने अभी उनके यहाँ जन्म लेना है। सभी बगड़ावतों की रानियों के सती होने के बाद, साडू माता हीरा दासी को साथ लेकर मालासेरी की डूगंरी पर रहने आ जाती है। अब रावजी कहते हैं कि बगड़ावतों के बालक टाबर हो तो उन्हें मैं पाल-पोस कर बड़ा करूं और वापस बगड़ावत खड़े करूं। यह बात छोछू भाट का मौसेरा भाई गांगा भाट सुन लेता है। उसे पता होता है कि बगड़ावतों के ७ बीसी कुमारों ( १४० कुमार) को छोछू भाट, भाट मगरें में पाल रहा है। रावजी जब अपनी सेना के साथ भाट मंगरे पहुंचते हैं, वहां छोछू भाट मंगरे पर बैठा देखता है कि सेना आ रही है तो सभी ७ बीसी राजकुमारों को मंगरे में छोड़ कर भाग जाता है। कालूमीर पठान रावजी से कहते हैं कि रावजी इनको पालने की गलती मत करना, इन्हें यहीं मार देते हैं, नहीं तो ये बड़े होकर अपने बाप-दादों का बैर आपसे लेगें। और कालूमीर कहता है कि रावजी २४ बगड़ावतों से युद्ध करते-करते ६ - ८ महीने हो गये, ये तो पूरे १४०है इनसे कैसे निपटेगें। रावजी कालूमीर पठान की बात मान जाते है और उन्हें मारने का आदेश दे देते हैं। कालूमीर पठान उन बच्चों को वहीं मार देता है। उनमें से एक बच्चा बच जाता है

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सवाई भोज की जाति क्या थी?

सवाई भोज 24 बगड़ावत चौहान इनकी गोत्र थी और इनकी जाति गुर्जर थी यह वीर थे और धार्मिक कार्य करते थे पशुपालन बड़े ही दानवीर थे


भगवान देवनारायण जी का इतिहास व जीवनी | History Of Devnarayan In Hindi



देवनारायण भगवान का शस्त्र क्या था

देवनारायण भगवान का सहस्त्र भाला और तलवार था

देवनारायण भगवान की घोड़े का क्या नाम था

देवनारायण भगवान की घोड़ी का नाम नीला घर
देवनारायण भगवान की पत्नी का क्या नाम था - देवनारायण भगवान की पत्नी का नाम पीपल देव पवार
भगवान देवनारायण जी का इतिहास व जीवनी | History Of Devnarayan In Hindi

नाम -  देवनारायण 
बचपन का नाम- उदल देव

पिता का नाम
देवनारायण भगवान के पिता का नाम वीर सवाई भोज बगड़ावत था इनकी गोत्र चौहान गुर्जर

माता का नाम- साडू गुजरी इनकी गोत्र - खटाना गुर्जर इन के गोत्र थी

देवनारायण भगवान की मृत्यु कब हुई थी।
मृत्यु	विक्रम संवत 999 (942 ई.)

देवनारायण भगवान का जन्म कब हुआ था।
जन्म	विक्रम संवत 968 (911 ई.)

देवनारायण भगवान का जन्म स्थान कौन सा है ।
जन्म स्थान स्थान	मालासेरीलोकप्रिय मंदिर	आसीन्द

पहचान	गौरक्षक

जयंती	भाद्रपद शुक्ल सप्तमी


बगड़ावत कौन सी जाती है?


हरिराम के पुत्र बाग जी को 12 पत्नियां थी 12 पत्नियों को दो दो लड़के थे जो 24 भाई बगडावत आगे जाकर कहलाए यह बड़े ही दानवीर थे और इनका मुख्य व्यवसाय पशुपालन था यह भगवान शिव के बड़े भक्त थे मां भवानी के भी

बगड़ावत कितने भाई थे?


बगड़ावत 24 भाई थे इनमें से सबसे बड़े तेजाजी थे 24 बगड़ावत की कथा दीपावली पर 24 बगड़ावत की हिट गाई जाती हैं और गाय को चारा खिलाते हैं गायकार ढोल नगाड़े बजते हैं और बगड़ावत द्वारा उनके नाम बखान करते हैं पुराने लोग 24 बगड़ावत की हिट गाकर खुशियां मनाते हैं दीपावली आने से पहले ही लोग वीर गाते हैं 24 बगड़ावत की

बगड़ावत के पिता कौन थे?

24 बगड़ावत के पिता बाग राव चौहान गुर्जर थे बागरा ओके पिताजी ने शेर का शिकार किया था वह अपनी तलवार धोने के लिए पुष्कर घाट पर जा रहे थे रास्ते में नीला सेवड़ी जो राव जी की माताजी थी वह नहा रही थी उनको वरदान था नीला सेवड़ी किसी भी इंसान का चेहरा नहीं देखती थी हरिराम जी अपनी तलवार धोने गए तो नीला शिवरी वहां स्नान कर रही थी उन्होंने उसका चेहरा दिखा दो उन्होंने शेर का कटा हुआ सिर अपने मुंह के सामने कर दिया था तो नीला शिर्डी को शेर का मुंह दिखाओ और शरीर इंसान का तो उसको जब संतान हुई तो शरीर इंसान का और गर्दन शेयर की थी जो बाघ जी पहला ही आगे जाकर उनका नाम रखा गया 24 बगड़ावत के पिता 


भुणा जी बगड़ावत ,भुणा जी की हिट


 भूणाजी, उसे पत्थर पर पटक देते हैं लेकिन वह बच्चा नहीं मरता है। (इन्हें लक्ष्मण का अवतार बताया गया है।) जब भूणाजी नहीं मरता हैं तो रावजी उसे अपना पीण्डी पाछ बेटा बना लेते हैं, अपनी पीड़ली के चीरा लगाकर एक दूसरे का खून आपस में मिला कर धरम बेटा बना लेते हैं। भूणाजी को लाकर रावजी अपनी रानी को देते हैं और कहते हैं कि इसे भी राजकुमारी तारादे के साथ-साथ अपना दूध पिलाओ और पाल-पोस कर बड़ा करो। रानी अपने स्थनो के जहर लगाकर भूणाजी को दूध पिलाती है, भूणाजी फिर भी नहीं मरते। आखिर रानी भूणाजी को हाथी के पावों से कुचलवाने को कहती है, हाथी उन्हें अपनी सूण्ड से उठाकर अपनी पीठ पर बैठा लेता है। यह सब देख कर रानीजी के भाई चान्दारुण के रहने वाले सातल-पातल, भूणाजी की चंटी अंगुली काटकर उन्हें खाण्डेराव का नाम देते हैं। सातल-पातल भूणाजी की अंगुली काटते समय यह कहते हैं की भाण्जे जब तू बड़ा हो जावे तब तेरे में ताकत हो तो हमसे बैर ले लेना। ये बात वहां बैठा एक पून्या जाट सुन लेता है और इस बात को गांठ बांध लेता है, वक्त आने पर भूणाजी को बता इस तरह बगड़ावतों के मारे जाने पर सारा परिवार अलग-अलग हो गया। रावजी ने बगड़ावतों के ७ बीसी कुमारों को भी मरवा दिया। उनके परिवार के बचे हुए ४ कुमार अलग-अलग जगह पर पले बढ़े। जिनमें सबसे बड़े मेहन्दू जी अजमेर में, तेजाजी के बेटे मदनों जी उनके पास पाटन में, भूणा जी राण में और भांगीजी बाबा रुपनाथ के पास ही पले बढ़े।

कथा और भी आगे हैं भाग १९ बनने से आप भी पढ़ें

बगडावत भारत कथा -19


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Ramlal_gujjar
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🙏राम राम सा ✍️लेखक रामलाल वीर भड़ाना गुर्जर मध्य प्रदेश देवास जिला गांव मगरिया  व्हाट्सएप नंबर +919399949985

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