बगड़ावत गुर्जर कौन थे,भोज बगड़ावत संपूर्ण कथा
बगडावत भारत कथा -21
इधर छोछ्र भाट को भगवान देवनारायण की याद आती है कि अब भगवान नारायण ११ बरस केहो गये होगें। उन्हें मालवा जाकर बताना चाहिये कि उन्हें अपने बाप और काका का बैर लेना है। छोछ्र भाट अपनी माताजी डालू बाई को अपने साथ लेकर मालवा चल पड़ता हैं। ४-५ दिनों तक चलकर मालवा पहुंचते हैं। वहां जंगल में नारायण की गायें चर रही होती हैं, छोछ्र भाट उन्हें देखकर पहचान जाता है कि ये गायां तो बगड़ावतों की हैं। वह ग्वालों से पूछता है कि ये गायां किसकी है। ग्वाल कहते हैं की नारायण की गायें हैं। और वहां नापा ग्वाल आ जाता है। वो छोछू भाट को देखकर पहचान जाता है। दोनों गले मिलतेहैं और छोछू भाट नारायण के पास ले चलने के लिये कहता हैं। नापा मना कर देता हैं कि तेरे को
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मैं नहीं ले जा सकता क्योंकि मुझे साडू माता ने मना किया है और कहा हैकि छोछ्र भाट को मालवा में नहीं आने देना। क्योंकि भाट नारायण को बगड़ावत केयुद्ध की सारी बात बता देगा और उन्हें लड़ाई करने के लिये वापस गोठां ले जायेगा। जैसे बगड़ावत मारे गये वैसे ही वो नारायण को नहीं खोना चाहती हैं छोड़ भाट ये बात सुनकर नापाजी से कहता है कि मैं मेवाड़ की धरा से नारायण के दर्शनों के लिये यहां चलकर आया और यदि नारायण के दर्शन नहीं होगें तो मैं और मेरी मां यहीं जान दे देगें। यह सुनकर नापा छोछ्रभाट को मालवा में नारायण के घर लेकर आ जाता हैं। साडू माता भाट को देखकर कहती है कि भाटजी आ गए अब वापस कब जाओगे। भाट कहता है कि भगवान नारायण से मिलकर, दो- चार दिन यहीं रहेगें। साडू माता भाट के लिये भोजन तैयार करती हैं। जब साडु माता भाट को खाना परोसती है। भाट कहता है माताजी मुझे तो थाली में खाना नहीं खाना जिस दिन से मेरे धणी मालिक (बगड़ावत) मारे गये उसी दिन से सोगन्ध उठा रखी है कि नारायण जब तक राण के रावजी को नहीं मारेंगे तब तक पातल (पत्तो की बनी थाली) में ही भोजन करूंगा साडू माता सोचती है कि कहीं भाट नारायण को बगड़ावत का
सारा किस्साना सुना दे इसलिए वह भाट को सिंध बड़ भेजकर मारने की योजना बनाती है और कहती है कि भाटजी ऐसा करो रास्ते में नदी के किनारे एक बड़ का पेड़ है, वहीं नहा धोकर निपटकर आते समय सिंध बड़ के पत्ते तोड़ लाना और उसी में भोजन करना। मैं आपके वास्ते अच्छा भोजन तैयार करवाती हूं। भाटजी अपना लोटा साथ लेकर सिंध बड़ की और चल पड़ते हैं। सिंध बड़ के नीचे आकर नदी के घाट पर स्नान ध्यान
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कर जैसे ही छोछ्र भाट बड़ के पत्ते तोड़ने का प्रयास करते है सिंध बड़ से ६४ जोगणियां और ५२ भैरु उत्तर भाट को पकड़ कर उसके टुकड़े-टुकड़े कर सभी आपस में बांट-घूंट कर खा जाते हैं। जब देवनारायण अपनी गायें चराकर घर वापस लौटते हैं तब उन्हें छोछ्र भाट के आने का पता चलता है और यह भी पता चलता है कि भाटजी सिंध बड़ के रास्ते गये हैं तो वो अपने नीलागर घोड़े पर सवार होकर सीधे सिंध बड़ पहुंचते हैं। वहां उन्हें भाट कहीं दिखाई नहीं देते लेकिन उनके कपड़े और लोटा पड़ा होता है तब देवनारायण समझ जाते हैं कि भाटजी को तो जोगणियां और भैरु खा गये हैं। देवनारायण अपने काले भैरु को बुलाते और सिंध बड़ को हिलाने का आदेश देते हैं। काला भैरु बड़ के पेड़ को पकड़कर जोर से हिलाता है। ६४ जोगणियां और ५२ भैरु नीचे आकर गिरते और कहते हैं। कि भाटजी को तो हम खा गये। नारायण कहते हैं कि भाटजी को अभी उगलो नहीं तो मैं तुम सब को अभी खत्म करता हूं। देवनारायण के डर से सभी जोगणियां और भैरु उगल कर एक-एक टुकड़े को जोड़ कर भाटजी को पूरा करते हैं। देवनारायण अपनी माया से भाट में प्राण डालते हैं। भाट वापस जिन्दा हो जाता है। देवनारायणभाट को साथ लेकर वापस लौटते हैं तो सभी जोगणियां और भैरु नारायण से विनती करतेहैं कि भगवान हमारे को इस गति से आजाद करहमारा उद्धार करो। देवनारायण सभी ६४ जोगणियां और ५२ भैरु को अपने बांये पांव में समा लेते हैं और इसके बाद भैरु और जोगणियां सदा देवनारायण की सेवा मेंरहते हैं। देवनारायण भाट को साथ लेकरआते हैं और रास्ते में भाट नारायण को सारी घटनाऐं बताते हैं कि किस तरह से बगड़ावत मारे गये। उनके पास जो खजाना के था, वो कौन-कौन लूट कर ले गये हैं और उनके भाईयों के बारे में भी बताते हैं और उन्हें जोश दिलाते हैं कि आपको अपने परिवार का बैर लेना चाहिये। अगले दिन ही मालवाछोड़कर गोठां चलने की विनती करते हैं। नारायण सारी बातें सुनने के बाद भाटजी से कहते हैं कि अभी तो घर चलते हैं और माता साडू से बात करेगें। भाटजी अपने साथ में बड़ के पेड़ से तोड़े पत्ते लेकर सा माता के यहां आते हैं और पत्तो से प हैं। नारायण कहते हैं कि भाटजी दो पत्तल बनाओ, मैं भी आपके पत्तल में ही भोजन करूंगा।
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