नियाजी बगड़ावत - देव नारायण

 नियाजी बगड़ावत- देव नारायण 

नियाजी बगड़ावत_देव नारायण
नियाजी बगड़ावत_देव नारायण 

बगडावत भारत कथा -16

बाबा रुपनाथजी निया से कहते हैं कि निया सब पहर का युद्ध करने के बाद सीधा तू मेरे पास आना। नियाजी कहते है बाबा गुरुजी मैदान से दिन भर की लड़ाई के बाद थक जाउंगा। ७ कोस चलकर आप के पास आना तो मुमकिन नहीं है। बाबा रुपनाथजी कहते है कि तेरी बात सही है, मैं ही तेरे साथ चलता हूं और नेगदिया में ही धूणी रमाता हूँ बाबा रुपनाथ और नियाजी साथ-साथ नेगदिया आ जाते हैं। बाबा रुपनाथ नेगदिया गांव के बाहर ही अपनी धूणी लगा लेते हैं। शंकर भगवान के अवतार बाबा रुपनाथ जी नियाजी को आशीर्वाद देकर युद्ध के लिये विदा करते हैं। और जब तक नियाजी युद्ध करते हैं तब तक नेगदिया छोड़ कर नहीं जाते हैं। हर सुबह सूरज उगने के साथ नियाजी रण का डंका बजा कर रावजी की सेना पर टूट पड़ते और कई सैनिको और सामंतो को मार डालते। रावजी के खास निजाम ताजूखां पठान, और अजमल खां पठान की १२ हजार सेना का सफाया कर नियाजी उनके सिर काट देते हैं। हर शाम नियाजी युद्ध भूमि से वापस लौटते समय अपने गुरु बाबा रुपनाथ जी की धूणी पर आते हैं। बाबा रुपनाथजी अपने हाथ का कड़ा नियाजी की देह पर घुमाते हैं और धूणी की राख लगाकर, अपने कमण्डल में से पानी के छीटें देते है जिससे नियांजी के सारे घाव भर जाते हैं और शरीर पर कहीं भी तलवार या भाले की चोट के निशान नहीं रहते हैं। नियाजी बगड़ावत,सवाई भोज बगड़ावत की लड़ाई,सवाई भोज रानी जयमती की कथा,बगडावत भारत कथा,dev dham jodhpuriya,Dev Dham, देव धाम जोधपुरिया,देव नारायण

बाबा रघुनाथ कहते हैं,नियाजी बगड़ावत,देव नारायण

 बाबा रुपनाथ कहते हैं कि ये बात किसी को मत बताना, किसी को भी इसका जिक्र मत करना। अब बावड़ी पर स्नान कर शिवजी का ध्यान करके घर जाओ। नियाजी बावड़ी पर स्नान करते हैं, शिवजी का ध्यान कर रंग महल में आते हैं। नेतुजी उन्हें भोजन करवाती है, पंखा झलती है। नियाजी अगली सुबह वापस रण क्षेत्र में आ जाते हैं और युद्ध में मालवा के राजा को मार गिराते हैं। मन्दसोर के मियां मोहम्मद की फौजो का सफाया कर देते हैं। मियां का सिर काट देते हैं और वापस बाबा रुपनाथजी के पास आते हैं। और फिर बाबा रुपनाथजी नियाजी के ऊपर अपना लोहे का कड़ा घुमाते हैं, धूणी की राख लगाते हैं, पानी के छीटें देते हैं। नियाजी के सारे घाव फिर से भर जाते हैं। ये क्रम कई दिनों तक चलता रहता हैं। उधर तेजाजी बगड़ावतों के बड़े भाई युद्ध क्षेत्र मेंआते हैं। जब नियाजी से युद्ध करके जाने के बाद रावजी की सेना खाना बना रही होती है, रावजी के सैनिक बाट्या सेक रहे होते हैं। तब तेजाजी अपनी सेना के साथ युद्ध क्षेत्र में आते है उनकी बाट्या वगैरा सब बिखेर देते हैं और सेना में भगदड़ मचा कर वापस चले जाते हैं। दोनों भाईयों का ये क्रम ३-४ दिनों तक चलता रहता है।नियाजी को युद्ध करते हुए पांच महीने से भी ज्यादा समय हो जाता हैं। भवानी (जयमती) सोचती है कि ऐसी क्या बात है नियाजी लगातार युद्ध कर रहें हैं। पता लगाना चाहिये, और रानी नेतुजी के पास जाकर कहती है कि क्या बात है भाभी जी देवर नियाजी को पांच महीने से ज्यादा समय हो गया है युद्ध करते हुए, क्या तुमने इनके शरीर पर कहीं तलवार या भाले का निशान देखा है ? ऐसी क्या बात है ? वापस आते समय कपड़ो के ऊपर खून का निशान तक नहीं होता। इसका क्या कारण है ? देख पता करना और मुझे बताना।  नियाजी बगड़ावत,सवाई भोज बगड़ावत की लड़ाई,सवाई भोज रानी जयमती की कथा,बगडावत भारत कथा,dev dham jodhpuriya,Dev Dham, देव धाम जोधपुरिया,देव नारायण 

नियाजी बगड़ावत कथा - नियाजी युद्ध करके लौटते है

नेतु कहती है की रानी सा आज नियाजी के युद्ध से आने के बाद पताकर्रूंगी। शाम को नियाजी युद्ध क्षेत्र से बाबा रुपनाथ के पास जाकर रंग महल में वापस आते हैं। खाना खाते समय नेतु पंखा झलती हुई नियाजी से कहती है एक बात पूछती हूं। आपको कई दिन हो गये लड़ाई करते हुए, आपके शरीर पर मुझे कभी कोई तलवार का निशान या कपड़ो पर खून तक लगा न नहीं आया, क्या राज है ? इस बात को मुझे बताओ। नियाजी कहते है नेतु ये बात बताने की नहीं है और तू मत पूछ मैं नहीं बताऊगां। नेतु जिद करती है तो नियाजी कहते है कि ठीक है मैं तुझे बता देता हूं लेकिन ये किसी और को मत बताना। नेतु कहती है नहीं बताऊगीं। नियाजी बाबा रुपनाथ की सारी प्रक्रिया नेतु को बता देते हैं। और अगली सुबह वापस युद्ध करने चले जाते हैं। पीछे से रानी जयमती आती है और नेतु से पूछती है कि नियाजी से क्या बात हुई। नेतु पहले तो मना कर देती है। बहाना बना लेती है कि वह नियाजी से पूछना भूल गई। रानी जयमती नेतु को कहती है कि भाभीजी आप तो झूठ कभी नहीं बोलती हो आज झूठ क्यो बोल रही हो? नेतु कहती है कि रानी सा आप किसी को नही कहना और वो सारी बात जयमती को बता देती है कि बाबा रुपनाथजी के पास एक ऐसा कड़ा है जिसे उनके शरीर पर घुमाने से नियाजी के सारे घाव भर जाते हैं। रानी जयमती वहां से सीधी बाबा रुपनाथ की धूणी पर आती है। उन्हें प्रणाम कर वहां घड़ी दो घड़ी रुकती है और पता लगाती है कि बाबा रुपनाथजी वो कड़ा कहां रखते हैं। उसे पता चलता है कि कड़ा बाबा के आसन के नीचे रखा हुआ है। और वो अपनी माया से चील बन जाती है और बाबा के आसन के नीचे से कड़ा अपनी चोंच में उठा कर उड़ जाती है। बाबा रुपनाथजी समझ जाते हैं कि निया ने जरुर भेद खोल दिया है। जब नियाजी युद्ध करके लौटते है तो बाबा रुपनाथ उससे कहते हैं कि निया तूने भेद किसे बताया है। निया को अफसोस होता है और कहते हैं कि आखिर औरतों के पेट में कोई बात नहीं टिकती। और बाबा रुपनाथ को प्रणाम कर वापस रण क्षेत्र में लौट आते हैं




कथा आगे और भी हैं भाग 17 यह भी पढ़ें 👇
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🙏राम राम सा ✍️लेखक रामलाल वीर भड़ाना गुर्जर मध्य प्रदेश देवास जिला गांव मगरिया  व्हाट्सएप नंबर +919399949985

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