भुणा जी का जन्म कब हुआ था | bhuna jee ka janm kab hua tha
भुणा जी का जन्म कब हुआ था

अब रावजी कहते हैं कि बगड़ावतों के बालक टावर हो तो उन्हें मैं पाल-पोस कर बड़ा करूं और वापस बगड़ावत खड़े करूं। यह बात छोड़ भाट का मौसेरा भाई गांगा भाट सुन लेता है उसे पता होता है कि बगड़ावतों के ७ बीसी कुमारों ( १४० कुमार) को छोछ्र भाट, भाट मगरें में पाल रहा है। रावजी जब अपनी सेना के साथ भाट मंगरे पहुंचते हैं, वहां छोछ्र भाट मंगरे पर बैठा देखता है कि सेना आ रही है तो सभी ७ बीसी राजकुमारों को मंगरे में छोड़ कर भाग जाता है। कालूमीर पठान रावजी से कहते हैं कि रावजी इनको पालने की गलती मत करना, इन्हें यहीं मार देते हैं, नहीं तोये बड़े होकर अपने बाप-दादों का बैर आपसेलेगें। और कालूमीर कहता है कि रावजी २४ बगड़ावतों से युद्ध करते-करते ६८ महीने हो गये, ये तो पूरे १४०है इनसे कैसे निपटेगें। रावजी कालूमीर पठान की बात मान जाते है और उन्हें मारने का आदेश दे देते हैं। कालूमीर पठान उन बच्चों को वहीं मार देता है। उनमें से एक बच्चा बच जाता है। |
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भुणा जी का जन्म कब हुआ था- bhuna jee ki hid
भूणाजी, उसे पत्थर पर पटक देते हैं लेकिन वह बच्चा नहीं मरता है। (इन्हें लक्ष्मण का अवतार बताया गया है।) जब भूणाजी नहीं मरता हैं तो रावजी उसे अपना पीण्डी पाछ बेटा बना लेते हैं, अपनी पीड़ली के चीरा लगाकर एक दूसरे का खून आपस में मिला कर धरम बेटा बना लेते हैं। भूणाजी को लाकर रावजी अपनी रानी को देते हैं और कहते हैं कि इसे भी राजकुमारी तारादे के साथ-साथ अपना दूध पिलाओ और पाल-पोस कर बड़ा करो। रानी अपने स्थनों के जहर लगाकर भूणाजी को दूध पिलाती है, भूणाजी फिर भी नहीं मरते आखिर रानी भूणाजी को हाथी के पावों से कुचलवाने को कहती है, हाथी उन्हें अपनी सूण्ड से उठाकर अपनी पीठ पर बैठा लेता है यह सब देख कर रानीजी केभाई चान्दारुण के रहने वाले सातल पातल, भूणाजी की घंटी अंगुली काटकर उन्हें खाण्डेराव का नाम देते हैं। सातल पातल भूणाजी की अंगुली काटते समय यह कहते हैं की भाण्जे जब तू बड़ा हो जावे तब तेरेमें ताकत हो तो हमसे बैर ले लेना। ये बातवहां बैठा एक पून्या जाट सुन लेता है और इस बात को गांठ बांध लेता है, वक्त आने पर भूणाजी को बता इस तरह बगड़ावतों के मारे जाने पर सारा परिवार अलग-अलग हो गया। रावजी ने बगडावतों के ७ बीसी कुमारों को भी मरवा दिया। उनके परिवार के बचे हुए ४ कुमार अलग- अलग जगह पर पले बढ़े जिनमें सबसे बड़े मेहन्दू जी अजमेरमें तेजाजी के बेटे मदनों जी उनके पास पाटन में, भूणा जी राण में और भांगीजी बाबा रुपनाथ के पास ही पले बढ़े।
बगडावत भारत कथा- बगड़ावतों का युद्ध
इधर सभी बगड़ावतों का नाश हो जाने पर साडू माता हीरा दासी सहित मालासेरी की डूंगरी पर रह रही होती है एक दिन अचानक वहाँ पर नापा ग्वाल आता है और सा माता को७ बीसी राजकुमारों के भी मारे जाने का समाचार देता है और कहता है कि साडू माता यहां से मालवा अपने पीहर वापस चलो कहीं राजा रावजी यहां पर चढ़ाई ना कर दे। लेकिन सा माता जाने से मना कर देती है जब एक दिन साडू माता की काली घोड़ी केनीला बछेरा पैदा होता हैं,
श्री देवनारायण भगवान का जन्म कब हुआ था- साडू माता
तब साडू माता को भगवान की कही बात याद आती है कि काली घोड़ी के एक बछेरा होगा वो नीलागर घोड़ा होगा उसके बाद मैं अवतार लूंगा साडू माता भगवान के कहे अनुसार सुबह ब्रह्म मुहर्त में स्नान ध्यान कर भगवान का स्मरण करती है। वहीं मालासेरी की डूंगरी पर पहाड़ टूटता है और उसमें से पानी फूटता है, जल की धार बहती हुई निकलती है, पानी में कमल के फूल खिलते हैं, उन्हीं फूलों में से एक फूल में भगवान विष्णु देवनारायण के रुप में अवतरित होते हैं। माघ शुक्ला ७ सात के दिन सम्वत ९६८ सुबह ब्रह्म मुहर्त में भगवान देवनारायण मालासेरी की डूंगरी पर अवतार (जन्म) लेते हैं। देवनारायण केटाबर (बालक) रुप को साडू माता अपने गोद में लेती है, उन्हें दूध पिलाती हैं और उन्हें लाड करती हैं। वहां से साडू माता हीरा दासी और नापा ग्वाल गोठां आते हैं। गांव में आते ही घर-घर में घी के दिये जल जाते हैं और सुबह जब गांव भर में बालक के जन्म लेने की खबर होती है, नाई आता हैं घर-घर में बन्धनवाल बांधी जाती हैं। भगवान के जन्म लेने से घर-घर में खुशी ही खुशी हो जाती हैं। साडू माता ब्राह्मण को बुलवाती है बच्चे का नामकरण संस्कार होता है। भगवान ने कमल के फूल में अवतार लिया है, इसलिए ब्राह्मण उनका नाम देवनारायण रखते हैं साडू माता ब्राह्मण को सोने की मोहरे, कपड़े देती है, भोजन कराती है, मंगल गीत गाये जाते हैं। सूर्य पूजन का काम होने के बाद गांव की सभी महिलाएं
Devnarayan ,नारायण ने अवतार लिया है।
साडू माता को बधाई देने आती हैं। गांव भर में लोगों का मुंह मीठा कराया जाता है कि साडू माता की झोली में नारायण ने अवतार लिया है। उधर रावजी के महलो में अपशगुन होने लगते हैं। रावजी को सपने आने लगते हैं कि तेरा बैर के लिये साडू माता की झोली में नारायण ने जन्म लिया है। वही तेरा सर्वनाश करेगे। रावजी सपना देखकर घबरा जाते हैं, और गांव-गांव दूतियां (डायन) का पता करवाते और बुलवाते हैं और कहते हैं कि गोठां गांव में एक टाबर (बालक) ने जन्म लिया है उसे खत्म करके आना है। डायने राण से गोठां में आ जाती है और लम्बे-लम्बे घूघंट निकाल कर घर में घुसती है। देखती है साडू माता भगवान के ध्यान में लगी हुई हैं। और दो डायन अन्दर आकर देखती है झूले में (पालकी) एक टाबर अपने पांव का अंगुठा मुंह में लेकर खेल रहा है उसके मुंह में से अगुंठा निकाल अपनी गोद में लेकर जहर लगा अपना स्थन देवनारायण के मुंह में दे देती हैं। नारायण उसका स्तन जोर से अपने दांतों से दबा देते हैं, जिससे उसके प्राण निकल जाते हैं। यह देख दूसरी डायनें वहां से भाग कर राण में वापस आ जाती हैं। रावजी फिर ब्राह्मणों को बुलाते हैं और कहते हैं कि गोठां जाकर वहां साडू माता के यहां एक टाबर हुआ है उसे मारना है। यदि तुम उसे मार दोगे तो मैं तुम्हें आधा राज बक्शीस में दूंगा। ब्राह्मण सोचते हैं कि टाबर को मारने में क्या है, उसे तो हम मिनटों में ही मार आयेगें।
गोठां में आकर ब्राह्मण साडू माता को कहते हैं की आपके यहां टाबर ने
संपूर्ण बगड़ावत कथा भाग 1 से लेकर तक 2
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Ramlal_gujjar |
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