24 बगड़ावतों के नाम -24 bagadawat ke Naam

 24 बगड़ावतों के नाम -24 bagadawat  ke Naam

24 बगड़ावतों के नाम -24 bagadawat  ke Naam
24 बगड़ावतों के नाम -24 bagadawat ke Naam

24 बगड़ावतों के नाम 

1तेजा जी बगड़ावत13कासों जी
2सेजा जी बगड़ावत14गूदड़ जी
3सवाई भोज बगड़ावत15खोतड़ जी
4नेवाजी जी बगड़ावत16कोला जी
5धनाजी जी17कुबाना
6माहरावत जी18करणा जी
7बाहरावत जी19जिवन जी
8झड़सी जी20कानू जी बगड़ावत
9बड़ी जी21लालो जी बगड़ावत
10सांगा जी22जोधा जी बगड़ावत
11मांगा जी23झाला जी बगड़ावत
12झांसा जी24बाला जी बगड़ावत

चौइस बगड़ावत भाइयों के नाम


चौबीस बगड़ावतों की कथा- भोज बगड़ावत कथा - 24 बगड़ावतों के नाम


जब राजा बिसलदेव को पता चलता है कि मेहन्दू जी ने बिजौरी को जेवर दिये हैं तो वो बहुत नाराज होते हैं और उनको मरवाने की साजिश करते हैं। मेहन्दू जी को मारने की साजिश के लिये राण के रावजी के यहां संदेश भेजते हैं कि सवाई भोज का लड़का मेहन्दू जी मेरी आंख में कांटे की तरह चुभ रहा है। राण के रावजी का संदेश आता है, वो लिखते है कि भूणाजी भी मेरे को काला भुजंग नाग लगता है। ये कहीं मेरे से अपने बाप का पैर न ले ले रावजी वापस लिखते है कि मेहन्द्र जी को शिकार के बहाने

रोहड्या के बीहड़ में भेज दो आगे में देख लूंगा। राजा बिसलदेव जी साडीवान भेज कर मेहन्दू जी को सूचना देते हैं कि मेवाड़ की भूमि पर नाहर (शेर) बहुत हो गये आते जाते लोगों को खा जाते हैं। प्रजा के रखवाले तो आप ही हो शिकार खेले भी बहुत दिन हो गये हैं। रोहड्यां का बीहड़ में जाइए और शेरों का शिकार कर लीजिए। मैहन्दू जी बटूर से अजमेर आये तो पहले अगह पर हाथियों का मुकाबला कर प्रवेश किया। वहाँ से अपने मानकराय बढ़ने पर सवार हो ५०० घुड़ सवार लेकर रोहड्यां के जंगल में शेरों के शिकार के लिये निकल जाते हैं। इधर से रावजी भूणाजी को लेकर बीहड़ में आ जाते हैं और बचीनी की बुरज पर आकर अपने डेरे डाल देते हैं। भूणाजी दातुन कर रहे होते हैं। वहां उनको तड़ातड़ गोलियां चलने की आवाज सुनाई देती हैं।

चौबीस बगड़ावतों की कथा

 जहां मेहन्द्र जी शेरों का शिकार कर रहे होते हैं। रावजी कहते हैं कि भूणा ये कौन है जो अपनी रियासत में अपनी इजाजत के बगैर शिकार खेलने आया हैं ? जाओ और उसे मेरे पास पकड़कर ले आओ सामना करे तो उसे मार डालना या उसे कैद करके दरबार में हाजिर करना। इतना कहकर रावजी तो वापस राण में आ जाते हैं। भूणाजी अपनी सेना में बन्ना चारण को साथ लेते हैं उसे सेना का सरदार बनाते हैं। बन्ना चारण कहता है सरकार हमला करने से पहले उसे संदेश तो भेज दो ताकि वो भी तैयार हो जाये। पीछे से हमला करना आप जैसे मद का काम नहीं है। भूणाजी साडीवान के हाथ संदेश दिलाते है कि मेरा नाम राजकुमार भूणा है, बिना आजा से यहां शिकार खेलने की सजा देने आ रहा हूँ। मेहन्द्र जी के पास सांडीवान संदेश लेकर आता है। मेहन्दू जी संदेश पढ़ते हैं और सोचते की भूणाजी तो मेरा भाई है। क्या

चौबीस बगड़ावतों की कथा

आईआई को मारेगा जरूर इसमें बाबा (बिसलदेव) की कोई चाल है, अपने रास्ते से मुझे हटाने की मेहन्द्र जी सांडीवान के साथ भूणाली को संदेश भेजते हैं। कहते हैं कि आप पधारो में आपसे गले मिलने के वास्ते इन्तजार कर रहा हूं। हम दोनों मिलकर साथ में माताजी की पूजा करेगे। सांडीवान भूणाजी के पास संदेश लेकर आते हैं। भूणाजी संदेश पडले हैं कि वो तो मुझसे गले लगने के लिये इन्तजार कर रहे हैं। भूणाजी बन्ना चारण को कहते हैं कि बन्ना हमने उसे युद्ध करने का संदेश भेजा और यो हमें संदेश भेज रहा है कि हम साथ मिलकर माताजी की पूजा करेंगे। बन्ना पूछते है कि कौन है वो भूणाजी कहते हैं कि मेहन्दू है कोई बन्ना पहचान जाता है और कहता है कि सरकार ये तो आपका आई है। मेहन्द्र सवाई भोज का लड़का है। ये क्या कहते हो बन्ना मेरे बाबासा तो रावजी है। ये मेरा भाई कहाँ से आ गया फिर ? बन्ना सारी बात बताता है कि बगड़ावतों के मरने का बाद रावजी और उनके साथियों ने आपको भी मारने की कोशिश की मगर आप बच गये और रावजी आपको अपना बेटा बनाकर साथ ले आये। और इस बात का भूणाजी को सबूत देता है कि आपकी चटी अगुली कटी हुई है। रावजी का और आपका खून मिलाकर रावजी ने आपको बेटा बनाया है और आपको खाण्डेराव नाम दिया। ये बात सुनकर भूणाजी अपने बछेने पर सवार होकर मैहन्दू जी से मिलने आते है। जहां दोनों आई गले मिलते हैं और एक दूसरे का हाल पूछते हैं। मेहन्दूजी उन्हें सारी बात बताते हैं कि अपने खानदान के मरने के बाद अपना खजाना कौन-कौन लूट कर ले गये हैं। और बाबासा की बोर घोड़ी को पांचू मील ले गया है। सुना है उसके सवा मण की बेहया गले में डाल रखी है और कैद करके रखी हुई है। जहां उसकी बड़ी दुर्दशा हो रही है। सबसे पहले आप उसे छुडाओ और सारी बात मेहन्दूजी भूणाजी को बताकर रोहड़िया की बीहड़ से सीधे खेडा चौसला आ गए। बगडावत भारत कथा 

चौबीस बगड़ावतों की कथा- भोज बगड़ावत कथा - 24 बगड़ावतों के नाम

खेडा चाँसला आकर मेहन्द्र जी देवनारायण से मिले। देवनारायण से मिलने के बाद मेहन्दू जी साडू माता से भी मिले क्योंकि मेहन्दू जी देवनारायण के बड़े भाई थे इसलिए साडू माता ने उनको राजगद्दी सौंप दी और उनका राजतिलक कर दिया। फिर दोनों भाईयों ने साडू माता और छोड़ भाट से सलाह लेकर तेजाजी के बेटे मदनों जी को संदेश भेजा और उन्हें भी खेड़ा चौसला बुला लिया। उधर भूणा जी मेहन्दू जी से मिलकर सीधे राण में पातु के पास आते हैं और पिछली सारी बात पूछते हैं। पातु बताती है कि हां तुम बगावती के लड़के हो यह सही है। अब भूणा जी के दिल में अपने बाप का बदला लेने की भावना जाग जाती है। भूणाजी पातू कलाली के यहां से सीधे दरबार में जाकर अरज करते हैं कि बाबासा मेरे को इजाजत दो मैं भीलों की खाल को फतेह करने जाना चाहता हूं। यहां एक बहुत अच्छी बोर घोड़ी है, उसे लेकर आना है। रावजी सोचते हैं कि इसे कहीं पता तो नहीं चल गया। लगता है मेहन्दू ने इन्हें सब कुछ बता दिया। रावजी कहते हैं बेटा भूणा भीला की खाल में खतरा है। वहां ८० हजार भोलो की सेना है उनसे वहां लड़ाई में जीतना बहुत कठिन

भोज बगड़ावत कथा - 24 बगड़ावतों के नाम

काम है। भूणाजी कहते हैं बाबासा में तो जा रहा हूँ भीलों का मुझे कोई तर नहीं है, मेरे को तो बौर घोड़ी चाहिये रावजी सोचते है जाना चाहता है तो जाने दो खुद-ब-खुद ही मर जायेगा, अपने रास्ते का कांटा साफ हो जायेगा। रावजी भूणाजी के साथ दियाजी और कालूमीर पठान कोऔर उनके साथ १७,००० सैनिक और तोपे, गोला-बारूद देकर भेजते हैं। भूणाजी भीलों की खाल में जाकर भीलों से अपने बाप का पैर सेने के लिये धांधू भील को संदेश भेजते हैं कि पापूजी हमारी और घोड़ी वापस कर हमारे सामने माफी मांगी नहीं तो शुद्ध करने को तैयार रहो। मैं मेरे बाबासा गावकार लेने आ रहा हूँ। धांधू भील भूणाजी को संदेश भेजते हैं किं भूणा तेरा बाप को रण में मैंने मारा था और अब तू भी भरने के लिये तैयार हो जा भीलमाल ठाकुर भूणा को कहते हैं कि तेरे बाप के खातिर हमारा पणी खारी के युद्ध में मारा गया। अब तू घोड़ी लेने चला आया। सारे के सारे भील भूणा पर चढ़ आते हैं। दोनों में घमासान युद्ध हो जाता है और युद्ध ५ महीने तक चलता है। जब भीलों की सारी फौज आ गई तब कालूमीर और दीया जी तो डर के भाग गये, सब झील एक कोस तक भूणा जी घेर लेते है भूणा जी समझ जाते हैं कि रावजी की फौज सो साथ नहीं दे रही है यह युद्ध तो अपने बलबूते पर ही लड़ना होगा। उधर राण में रावजी को तलावत खां खिलजी का युद्ध का संदेश मिलता है। तलावत खा खिलजी, खरनार के बादशाह का संदेश पढ़ कर रावजी घबरा जाते हैं। सोचते हैं कि उनके खास उमराव तो भूणाजी के साथ भीलों की खाल में लड़ाई कर रहे हैं. तलावल खां का क्या करे ? रावजी ने पहले तलावत खां को बगावतों से युद्ध के समय कहा था कि युद्ध जीतकर

चौबीस बगड़ावतों की कथा- भोज बगड़ावत कथा - 24 बगड़ावतों के नाम


दीपकंवर बाई से आपका विवाह करवायेंगे। मगर दीपकंवर बाई तो युद्ध मैं मारी जाती है तलावत या उस समय तो वापस लौट जाता है मगर फिर रावजी को संदेश भेजता है कि दीपकंवर न सही आपकी बेटी तारादे से मेरा विवाह (निकाह ) करा दो, नहीं तो मेरे साथ युद्ध करो। मैं तुम्हें अपने साथ कैद कर के ले जाऊंगा। रावजी तलावत खा के डर से तारादे को राताकोट में छिपा देते हैं और कहते हैं कि कुछ भी हो तुम यहां से बाहर मत निकलना। तलावत खान अपनी सेना के साथ राण पर चढ़ाई कर देता है। बहुत ढूंढने पर भी तलावत खां को तारादे कहीं नहीं मिलती है। फिर बादशाह तलावत खां नौलखा बाग में छुपकर रावजी के जाने का इन्तज़ार करने लगा। रावजी का ग्यारस (ग्यारस का व्रत) नजदीक आ गया था। रविवार के दिन रावजी जब ग्यारस को व्रत खोलने नौलखे बाग मै गये वहां बादशाह तलावत खा ने रावजी को कैद कर लिया। बगडावत भारत कथा तलावत खां ने राणाजी को कैद कर अपने साथ ले जाते समय रास्ते मैं शोभादे को, जो पुरोहित की लड़की होती है, उसको भी पकड़ लिया। खरनार के बादशाह को रावजी ने कहा तू शोभादे को छोड़ दें बादशाह ने कहा कि मैं शीमादे को एक शर्त पर छोड़ दूंगा, तुम मेरा निकाह तारादे से करा दो। बादशाह एक लोहे का पिंजरा बना कर रावजी को बन्द कर लेता है और शोभादे से निकाह कर लेता है और उन दोनों को साथ लेकर

चौबीस बगड़ावतों की कथा- भोज बगड़ावत कथा - 24 बगड़ावतों के नाम

 खरनार वापस चला जाता है। जब तारादे को पता चलता है कि तलावत खां, बाबासा (रावजी) को कैद कर ले गया है तब तारादे सांडीवान के हाथ भीलों की खाल में अपने भाई भूणाजी को संदेश भेजती है कि भूणाजी में बहुत बीमार हू और अगर आखिरी समय मुझसे मिलना हो तो जल्दी से आ जाओ तारादे दूसरा परवाना दीयाजी और कालूमीर को लिखती है कि बाबा रावजी को खरनार का बादशाह पकड़ ले गया है। उधर भूणाजी धाधूं भील को मारकर वहां से अपनी बोर छोड़ी को छुड़ाकर साथ लेकर राण वापस आते है तारादे भूणाजी को सारी बात सुनाती है कि तलावत खां सात समुंदर पार रावजी को कैद कर ले गया है। विनती करती है कि उन्हें छुड़ाकर लाये भूणाजी तारादे को कहते हैं कि अगर तू मुझे भीलमाल में ही पूरा समाचार लिख भेजती तो मैं बादशाह को रास्ते में ही रोक लेता, लेकिन तूने तो अपनी बीमारी का समाचार भेजा था और फिर रावजी के सारे उमराव तो यहीं वापस आ गए थे। उन्होंने तलावत खां को क्यों नहीं रोका ? तारादे तब भूणाजी को बताती है कि वे सब तो महल में छिप कर बैठ गए थे। इस पर भूणाजी कहते हैं कि तारादे अब तक तो तलावत खा ने उन्हें मार दिया होगा अब जाने से क्या फायदा और सात समुंदर पार इतनी सारी सेना हाथी घोड़ो को लेकर जाना भी मुमकिन नहीं है  24 बगड़ावतों के नाम ,24 bagadawat  ke Naam,चौइस बगड़ावत भाइयों के नाम,चौबीस बगड़ावतों की कथा,भोज बगड़ावत कथा,24 बगड़ावत की कथा,24 बगड़ावत की कथा 

राणी सांखली भूणाजी को ताना कसती है कि भूणाजी आप मेरे जाये नहीं हो इसलिये आप नहीं जाना चाहते हैं आप को राण का राज ज्यादा प्यारा है। राणी सांखली का उलाहना सुनकर भूणाजी जाने के लिये तैयार हो जाते है और बहादुर सैनिको का चुनाव कर, उमरावी, सरदारों औरराजाओं को इकट्ठा करते हैं। दीयाजी, कालूमीर, टोड़ा के सोलंकी और पिलोदा ठाकुर को संदेश भेजते हैं कि रावजी को खरनार के बादशाह की कैद से आजाद कराने केलिए हम सबको साथ-साथ काबुल चलना होगा। भूणाजी तलावत खा खिलजी से युद्ध करने के लिये राणी सांखली से विदाई लेते है। वह भूणाजी की आरती करती है और तिलक लगा कर विदा करती हैं। भूणाजी की फौज खरनार के बाहर समुद्र के किनारे पहुंच जाती है। भूणाजी अपनी बोर घोड़ी को कहते हैं कि हम दोनों को यह समुद्र लांघकर अकेले ही खरनार पहुंचना होगा। इतने सारेसैनिक समुद्र लांघ कर कैसे जाएँगे ? घोड़ी कहती है 

चौबीस बगड़ावतों की कथा- भोज बगड़ावत कथा - 24 बगड़ावतों के नाम


कि भूणाजी गढ़ कोटे होते तो जरूर चढ़ जाती मगर पानी तो में नहीं लांघ सकती। तब भूणाजी बन्ना चारण से कहते हैं कि मैंने माताजी को वचन दिया हैतो बाबाजी को छुड़ाने तो जाना ही पड़ेगा। लेकिन इस समुद्र को कैसे पार किया जाए। बन्ना चारण कहता है भूणाजी भगवान देवनारायण का ध्यान कीजिए वे ही इस समस्या को हल करेंगे। भूणाजी स्नान-ध्यान कर देवनारायण को याद करते हैं। देवनारायण भूणाजी की सहायता के लिए भैरुजी को भेजते हैं। मैरुजी आते हैं और पानी में पत्थर का रास्ता बना देते हैं। भूणा जी की फौज पानी के ऊपर के रास्ते पर चल पड़ती है। सात समुद्र को पार कर भूणा जी अपनी फौज के साथ खरनार पहुंच जाते हैं। भूणाजी खरनार के बादशाह पर हमला कर महल में जाकर उनको पकड़ लेते हैं। 

चौबीस बगड़ावतों की कथा

   भूणाजी खरनार के बादशाह को मारने ही वाले होते. हैं कि बीच में शोभादे आ जाती हैं और भूणाजी से कहती है कि दादा ये जैसे भी है अब मेरे पति हैं, आप इनको छोड़ दीजिए। भूणाजी तारादे की तरह शोभादे को भी अपनी बहन मानते थे इसलिए खरनार के बादशाह को माफ कर जीवित छोड़ देते हैं और रावजी को कैद से छुड़ाकर वापस राण की तरफ रवाना होते हैं। जब भूणाजी रावजी को साथ लेकर राण पहुंचते हैं तो रानीजी भूणाजी और रावजी की आरती करती हैं। राण में वापस खुशियां लौट आती हैं। राता कोट में घी के दिये जल उठते है इधर अजमेर में जब राजा बिसलदेव जी को पता चलता है कि देवनारायण ने मालवा से वापस आकर खेड़ा चौसला नामक गांव बसा लिया है तब वह बहुत ही नाराज होते हैं और सांड़ीवान के हाथ देवनारायण के नाम संदेश भेजते हैं कि मेरी आंखों केसामने पले बड़े बालक- टाबर ने गांव बसा लिया और हमको खबर भी नहीं करी । अब आकर इसकी करनी भरो और साथ ही यह भी लिखते हैं कि मेहन्दू जी को हमने छोटे से बड़ा किया था और इसको बटूर के थानेदार बनाया था, इसके पीछे जो खर्चा हुआ था वो भी हमें लौटाओ। देवनारायण बिसलदेव जी का संदेश पढ़कर छोछ्र भाट को लेकर अजमेर की ओर रवाना होते हैं। जैसे ही देवनारायण के घोड़े नीलागर के पांव की टांपे अजमेर शहर में पड़ती हैं वैसे ही बिसलदेव जी का राज धूजने ( हिलने) लग जाता है। देवनारायण बाहर ही रुक जाते हैं और छोछ्र भाट अजमेर की कचहरी में जाकर बिसलदेव को बताता है कि देवनारायण पधारे हैं। देवनारायण फिर अजमेर के महल का कांगड़ा तोड़ते हैं। बिसलदेवजी देखते हैं कि देवनारायण तो बहुत बलवान हैं, कहीं ये महलों में आ गये तो महल टूट जायेगा। वो अपने दानव भैंसा सुर को बुलाते हैं और कहते हैं कि भैंसा सुर एक ग्यारह वर्ष का टाबर नीलागर घोड़े पर सवार अजमेर में आया है, जाकर उसे खा जाओं ।

चौबीस बगड़ावतों की कथा

   भैंसासुर दानव जाकर देवनारायण को ललकारता है। देवनारायण अपनी तलवार से भैंसासुर का वध कर देते हैं। लेकिन भैंसा सुर दानव के रक्त की बूंदे जमीन पर गिरते ही और कई दानव पैदा हो जाते हैं। यह देख देवनारायण अपने बायें पांव को झटकते हैं, उसमें से ६४ जोगणिया और ५२ भैरु निकलते हैं। देवनारायण उन्हें आदेश देते हैं कि मैं दानवों को मारुंगा और तुम उनके खून की एक भी बूंदजमीन पर गिरने मत देना। सभी जोगणियां और भैरु अपना खप्पर लेकर तैयार हो जाते हैं, और देवनारायण एक-एक दानव का संहार करते जाते हैं। भैंसा सुर दानव व अनेक दानवी के मारे जाने की खबर बिसलदेव जी को लगती है तब बिसलदेव जी देवनारायण को गरड़ा घोड़ा देते हैं जो अपने ऊपर किसी को भी सवारी नहीं करने देता था और आदमियों को खा जाता था। देवनारायण उस घोड़े पर बैठकर वहीं एक पत्थर के खम्बे को तलवार से काट कर दो टुकड़े कर देते हैं। देवनारायण का बल देखकर बिसलदेव जी घबरा जाते हैं। और दौड़ते हुए देवनारायण के पास आकर कहते हैं भगवान मुझसे गलती हुई, क्षमा करें और बहुत सा धन देकर देवनारायण को वापस खेड़ा चौसला रवाना करते हैं। इसके बाद देवनारायण और मेहन्दू जी भार से पूछते हैं कि हमारा क्या-क्या सामान कौन-कौन ले गया है और उसे कैसे लेकर आना है ? भटजी उन दोनों को बताते हैं कि सवाई भोजकी बुली घोड़ी सावर के ठाकुर दियाजी के पास है, उसे वापस लेकर आना है। ये बात सुनकर मेहन्दू जी कहते हैं कि मैं अभी जाकर सावर से बाबासा की घोड़ी छुड़ा कर लाता हूँ और छोड़ भाट को साथ लेकर चल देते हैं मेहन्दू जी मानकराय बछेरा पर सवार हो और छोड़ भाट फुलेरे बछेरे पर सवार होकर सावर के लिये निकल पड़ते हैं। आगे एक जगह जाकर रुकते है जहां से सावर के लिए दो रास्ते फटते हैं। मेहन्दू जी भाट से पूछते हैं भाटजी कौनसे रास्ते जाना चाहिये भाट कहता है सरकार एक रास्ता एक दिन का और दूसरा रास्ता तीन दिन का है। एक दिन वाले रास्ते पर खतरा है और तीन दिन वाले रास्ते पर कोई खतरा नहीं है। आप हुकम करो उसी रास्ते चलते हैं। मेहन्दू जी कहते हैं कि अपने पास शस है, खतरा होगा तो निपट लेंगे और एक दिन वाले रास्ते चल पड़ते हैं। आगे घना जंगल आता है। वहां भगवान शिव और पार्वती जी दोनों विराजमान होते हैं। पार्वती जी छल करने के लिये तो हाथ लम्बाशेर अपनी माया से बनाकर मेहन्द्र जी के सामने छोड़ देती है। मेहन्दू जी शेर देखकर घबरा जाते हैं कि इतना बड़ा शेर तो कभी देखा नहीं और वो पीछे हट जाते हैं. और वापस खेड़ा पॉसला लौट जाते हैं जब मेहन्द्र जी खाली हाथ वापस आते है तब देवनारायण छोड़ भाट को लेकर अपने नीलागरघोडे पर सवार हो सांवर के रास्ते चल पड़ते हैं। रास्ते में वही जाकर रुकते हैं जहां दो रास्ते अलग-अलग दिशा में जाते हैं। देवनारायण भटजी से पूछते हैं बाबाभाट कौनसे रास्ते जाना चाहिये छोछ्र भाटकहता है एक रास्ता एक दिन का है जिसमे खतरा ही खतरा है, दूसरा रास्ता तीन दिन का है। देवनारायण कहते है भाटजी हम तो एकदिन वाले रास्ते हो जायेंगे, और वो आगे चलते

है। आगे घना जंगल आता है जहां शिवजी आंखे बंद किये ध्यान में लीन है औरपार्वती जी शिव के पांव दबा रही है। पार्वती जी देखती है कि देवनारायण आ रहे हैं और वह शिवजी से कहती है कि भगवान में तो इनकी परीक्षा लूंगी। शिवजी मना करते हैं कि ये तो स्वयं नारायण है आपका शेर मारा आएगा पार्वती जी नहीं मानती है और वो अपने शेर को देवनारायण के आगे छोड़ देती है।

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Ramlal_gujjar
Ramlal_gujjar 

🙏राम राम सा ✍️लेखक रामलाल वीर भड़ाना गुर्जर मध्य प्रदेश देवास जिला गांव मगरिया  व्हाट्सएप नंबर +919399949985

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